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Toggleश्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र:
श्री रुद्राष्टकम् की भूमिका
श्री रुद्राष्टकम् भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अष्टक है, जिसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। यह स्तोत्र रामचरितमानस के उत्तरकांड में आता है, जब श्रीरामजी ने अगस्त्य मुनि से भगवान शंकर की महिमा पूछी। यह अष्टक शिवजी के निर्गुण, निर्विकार, योगस्वरूप, अजन्मा और अनंत रूप की उच्चतम भक्ति में डूबकर की गई वंदना है।
श्रीरुद्राष्टकम् के प्रत्येक श्लोक में शिव के भौतिक और आध्यात्मिक स्वरूपों का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है — वे दिगंबर हैं, काम का दमन करने वाले हैं, भस्म लिप्त हैं, नीलकंठ हैं, योगीश्वर हैं, और त्रिनेत्रधारी हैं। परंतु वे करुणा के सागर भी हैं, भक्तों पर सहज कृपा करने वाले हैं।
इस स्तोत्र को पढ़ना अथवा गाना — विशेषकर सोमवार, शिवरात्रि, या प्रदोष के दिन — अत्यंत फलदायी माना गया है। यह न केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का साधन है, बल्कि आत्मा की शांति, कर्म-शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं” से प्रारंभ होकर यह स्तोत्र साधक को धीरे-धीरे शिव की गहराई में ले जाता है, जहाँ न द्वैत रहता है, न माया — केवल शिव-तत्त्व ही शेष रहता है।
श्लोक 1:
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
हिन्दी अनुवाद :
मैं उस भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ जो
ईश्वर के भी ईश्वर हैं,
मोक्षस्वरूप हैं,
सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हैं,
जो स्वयं ब्रह्म हैं और वेदों के स्वरूप हैं।
वे अपने निजस्वरूप में स्थित हैं,
गुणों से परे हैं,
विकल्प या द्वैत से रहित हैं,
इच्छा से मुक्त हैं,
चैतन्य के आकाश स्वरूप हैं,
और सबके भीतर, आकाश की तरह व्याप्त हैं —
ऐसे भगवान शिव की मैं भक्ति करता हूँ।
श्लोक 2:
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥
हिन्दी अनुवाद :
मैं उस भगवान शिव को नमन करता हूँ जो—
निराकार हैं,
ॐ (ओंकार) के मूल स्रोत हैं,
चतुर्थ अवस्था (तुरीय) में स्थित हैं,
वाणी और ज्ञान की सीमा से परे हैं,
और कैलाशपति गिरीश हैं।
वे अत्यंत भयानक हैं,
महाकाल हैं — स्वयं काल के भी काल हैं,
परंतु अत्यंत करुणामय भी हैं।
वे गुणों के भंडार हैं,
और इस संसार-सागर से पार ले जाने वाले हैं।
ऐसे प्रभु को मैं बारंबार प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 3:
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा॥
हिन्दी अनुवाद :
वे भगवान शिव —
हिमालय के समान श्वेत और गंभीर हैं,
जिनका दिव्य शरीर मन और कामदेव की करोड़ों प्रकाश रश्मियों से भी अधिक तेजस्वी है।
उनके सिर पर गंगा देवी की सुंदर धाराएं लहरा रही हैं,
उनके ललाट पर शीतल चंद्रमा सुशोभित है,
और उनके कंठ में भयंकर सर्प विराजमान है।
श्लोक 4:
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
हिन्दी अनुवाद :
मैं भगवान शंकर की भक्ति करता हूँ,
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं,
वे वक्र भ्रू और विशाल नेत्रों से युक्त हैं,
उनका मुख हमेशा प्रसन्न रहता है,
वे नीलकण्ठ हैं और दयालुता की मूर्ति हैं।
वे सिंह की खाल को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं,
गले में मुण्डों की माला पहने हुए हैं,
और समस्त संसार के स्वामी हैं —
ऐसे प्रिय शंकर की मैं भक्ति करता हूँ।
श्लोक 5:
प्रचण्डं प्रहृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशम्।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥
हिन्दी अनुवाद :
मैं उस भवानीपति (माता पार्वती के स्वामी) शिव की भक्ति करता हूँ,
जो अत्यंत प्रचण्ड (तेजस्वी) हैं,
हर्ष से पूर्ण, निर्भीक और निर्बाध हैं,
वे परमेश्वर हैं,
अखंड (अविनाशी), अजन्मा,
और करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान हैं।
वे त्रिशूलधारी हैं,
जो त्रिविध ताप (आधि, व्याधि, उपाधि) को मूल से नष्ट कर देते हैं,
वे भाव से ही प्राप्त किए जा सकते हैं —
ऐसे कृपालु प्रभु को मैं श्रद्धापूर्वक भजता हूँ।
श्लोक 6:
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्दसन्दोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
हिन्दी अनुवाद :
हे कामदेव के संहारक प्रभु!
आप समय और कला से भी परे हैं,
आप कल्याणस्वरूप हैं,
और प्रलय काल में संहार करने वाले हैं।
आप सदा सज्जनों को आनंद प्रदान करते हैं,
आप पुरारी हैं — अर्थात त्रिपुरासुर के नाशक,
आप चिदानन्द (शुद्ध चेतना और आनंद) का समूह हैं,
और मोह (अज्ञान और भ्रम) को दूर करने वाले हैं।
हे प्रभु! कृपा करें, कृपा करें!!
श्लोक 7:
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजंतीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥
हिन्दी अनुवाद :
हे उमानाथ (माता पार्वती के पति)!
जब तक मनुष्य इस लोक या परलोक में
आपके कमल जैसे चरणों की भक्ति नहीं करता,
तब तक न तो उसे सच्चा सुख मिलता है,
न शांति, और न ही दुखों का नाश होता है।
हे प्रभु! कृपा करें,
आप तो सभी प्राणियों के भीतर निवास करने वाले हैं।
श्लोक 8:
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
हिन्दी अनुवाद :
हे प्रभु शम्भु!
न मैं योग जानता हूँ, न मंत्रजप, और न ही पूजा की विधियाँ।
परंतु मैं सदैव आप ही को नमन करता हूँ।
हे प्रभु!
मैं जरा (बुढ़ापा), जन्म और दुखों के भारी भार से पीड़ित हूँ —
हे प्रभो! कृपा करके मेरी रक्षा करें।
मैं आपका शरणागत हूँ।
मूल श्लोक:
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामी तुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
हिन्दी अनुवाद :
यह रुद्राष्टक स्तोत्र, एक ब्राह्मण (यहाँ तुलसीदास जी) द्वारा
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा गया है।
जो भी पुरुष (या स्त्री) इस स्तोत्र का भक्ति भाव से पाठ करते हैं,
उन पर भगवान शम्भु अवश्य प्रसन्न होते हैं।
इस प्रकार श्री गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित “श्री रुद्राष्टक” पूर्ण होता है।
श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र: लाभ, पूजा विधि और प्रमुख प्रश्नोत्तर
श्री रुद्राष्टकम् क्यों पढ़ें?
श्री रुद्राष्टकम् न केवल एक स्तुति है, बल्कि वह आत्मा और परमात्मा के बीच की दिव्य अनुभूति का पुल है। यह गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक ऐसा अष्टक है जिसमें भगवान शिव के परमतत्व, योगस्वरूप, तांडव रूप, करुणा और निर्वाण स्वरूप का अद्भुत समावेश है।
जिस भक्ति से यह स्तोत्र लिखा गया है, वह स्वयं में साधना बन जाती है।
श्री रुद्राष्टकम् के लाभ (फायदे)
1. मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति
इसका पाठ चित्त को स्थिर करता है, एकाग्रता बढ़ाता है और मन को शुद्ध करता है।
2. संकटों से रक्षा
भय, रोग, शत्रु और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है। रात्रि को इसका पाठ विशेष रूप से रक्षक होता है।
3. पापों का क्षय और आत्मशुद्धि
जानबूझकर या अनजाने में हुए पापों का प्रायश्चित स्वरूप है यह स्तोत्र।
4. वित्त और रोजगार में प्रगति
शिवजी की कृपा से साधक को नए अवसर प्राप्त होते हैं। व्यापार, नौकरी और आय में वृद्धि संभव होती है।
5. योग, ध्यान और साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ
जो साधक शिव तत्त्व में लीन होना चाहते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है।
रुद्राष्टकम् स्तोत्र की पूजा विधि
सर्वश्रेष्ठ दिन:
सोमवार, प्रदोष व्रत, शिवरात्रि, पूर्णिमा, एकादशी
उत्तम समय:
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त या संध्या आरती के समय
सामग्री:
जल, गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, सफेद पुष्प, चंदन, भस्म, घी दीपक, धूप, नैवेद्य
विधि:
स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें।
भगवान शिव का ध्यान करें – “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
शिवलिंग या शिव मूर्ति पर जलाभिषेक करें।
बेलपत्र, पुष्प, चंदन आदि अर्पित करें।
अब श्री रुद्राष्टकम् का पाठ करें (यदि संभव हो तो 3 बार)।
अंत में आरती और नमस्कार करें।
प्रसाद वितरण करें और शिव मंत्रों का स्मरण करते रहें।
प्रमुख प्रश्नोत्तर (FAQs)
Q1. क्या रुद्राष्टकम् को आम व्यक्ति भी पढ़ सकता है?
उत्तर: हाँ, यह सभी के लिए है – स्त्री, पुरुष, गृहस्थ, सन्यासी। बस मन में श्रद्धा होनी चाहिए।
Q2. क्या इसे घर में शिवलिंग न होने पर भी पढ़ा जा सकता है?
उत्तर: बिल्कुल। भगवान शिव हर जगह व्याप्त हैं। मन में शिवलिंग की कल्पना करके भी पाठ उतना ही प्रभावशाली होता है।
Q3. क्या रुद्राष्टकम् का पाठ रोज़ कर सकते हैं?
उत्तर: हाँ। यदि रोज़ न भी हो सके तो सोमवार, प्रदोष या एकादशी को ज़रूर करें।
Q4. क्या रुद्राष्टकम् सुनना भी उतना ही लाभकारी है?
उत्तर: हाँ, यदि शुद्ध मन से सुना जाए तो वही फल प्राप्त होता है, विशेषकर ब्रह्ममुहूर्त में।
Q5. रुद्राष्टकम् का कौन-सा श्लोक सबसे प्रभावशाली है?
उत्तर: सभी श्लोक शक्तिशाली हैं, परन्तु प्रथम श्लोक –
“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं…”
भगवान शिव के निर्वाण स्वरूप का वर्णन करता है और साधक को आत्मज्ञान की दिशा में ले जाता है।
निष्कर्ष
श्री रुद्राष्टकम् न केवल स्तोत्र है, यह एक अद्वैत भक्ति साधना है। इसके शब्दों में वह शक्ति है जो मन के तम को दूर कर, आत्मा को शिव से जोड़ देती है। इसे पढ़ना मात्र भगवान शिव से जुड़ने की प्रक्रिया है, और जो जुड़ गया – वह मुक्त हो गया।