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अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम् की भूमिका
हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन, वैभव, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। लेकिन लक्ष्मी जी केवल भौतिक धन ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में सौभाग्य और संतुलन प्रदान करती हैं। इन्हीं दिव्य गुणों को दर्शाने के लिए माता लक्ष्मी के आठ स्वरूपों की स्तुति की जाती है, जिन्हें मिलाकर “अष्ट लक्ष्मी” कहा जाता है।
अष्ट लक्ष्मी के ये आठ रूप हैं — आदि लक्ष्मी (आध्यात्मिक समृद्धि), धन लक्ष्मी (वित्तीय सुख), धान्य लक्ष्मी (अन्न और अन्नपूर्णता), गज लक्ष्मी (राजसिक ऐश्वर्य), संतान लक्ष्मी (संतान सुख), विजय लक्ष्मी (जीवन में सफलता), विद्या लक्ष्मी (ज्ञान और शिक्षा) और धैर्य लक्ष्मी (सहनशीलता व आत्मबल)। ये आठों रूप मानव जीवन के हर चरण और आवश्यकता को पूर्ण करते हैं।
“अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम्” एक पावन स्तोत्र है जिसमें इन आठ स्वरूपों की स्तुति की जाती है। इसे पढ़ने से न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी मिलती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से शुक्रवार, दीपावली, नवमी, या पूर्णिमा जैसे पवित्र दिनों पर पढ़ा जाता है।
श्रद्धा और नियमितता से इसका पाठ करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है, दरिद्रता दूर होती है और जीवन में शुभ ऊर्जा का संचार होता है। यह स्तोत्र भक्ति, काव्य सौंदर्य और दैवीय शक्ति का अनुपम संगम है।
अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम् (Ashta Lakshmi Stotram)
1. आदि लक्ष्मी
श्लोक:
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहॊदरि हेममये
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥1॥
हिंदी अनुवाद:
हे सुंदर माधवी स्वरूपिणी! सज्जनों द्वारा वंदित, चंद्रमा की बहन, और स्वर्णमयी आप हैं।
ऋषियों द्वारा पूजित, मोक्ष देने वाली, मधुर वाणी वाली और वेदों द्वारा स्तुत्य हैं।
कमल पर विराजमान, देवों द्वारा पूजित, सद्गुणों की वर्षा करने वाली और शांतिदायिनी।
हे मधुसूदन की प्रिय! हे आदि लक्ष्मी! मेरी रक्षा कीजिए।
2. धान्य लक्ष्मी
श्लोक:
अयि कलिकल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि सदापालय माम् ॥2॥
हिंदी अनुवाद:
हे पापों का नाश करने वाली, शुभकामनाओं को पूर्ण करने वाली! आप वैदिक स्वरूप और वेदमयी हैं।
आप क्षीर सागर से उत्पन्न मंगल स्वरूपिणी हैं, मन्त्रों में निवास करती हैं और मन्त्रों से स्तुत्य हैं।
मंगलदायिनी, कमल पर रहने वाली, देवताओं के चरणों की शरणस्थली!
हे मधुसूदन की प्रिया! हे धान्य लक्ष्मी! सदा मेरी रक्षा कीजिए।
3. धैर्य लक्ष्मी
श्लोक:
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥3॥
हिंदी अनुवाद:
हे विजय का वरदान देने वाली, वैष्णवी और भार्गवी स्वरूप! आप मंत्रमयी हैं।
देवगण आपकी पूजा करते हैं, आप शीघ्र फल प्रदान करने वाली और ज्ञान को विकसित करने वाली हैं।
आप संसार के भय को हरने वाली, पाप से मुक्ति देने वाली, और साधुओं की शरणस्थली हैं।
हे मधुसूदन की प्रिय! हे धैर्य लक्ष्मी! मेरी रक्षा कीजिए।
4. गज लक्ष्मी
श्लोक:
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रथगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥4॥
हिंदी अनुवाद:
हे संकटों का नाश करने वाली! आप सभी फल देने वाली और शास्त्रों की ज्ञाता हैं।
आप रथ, हाथी, घोड़े, पैदल सैनिकों से सुसज्जित परिजन सहित पूजनीय हैं।
हरि, हर और ब्रह्मा द्वारा पूजित, तापों का निवारण करने वाली हैं।
हे मधुसूदन की प्रिय! हे गज लक्ष्मी! अपने रूप से मेरी रक्षा करें।
5. सन्तान लक्ष्मी
श्लोक:
अयि खगवाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम् ॥5॥
हिंदी अनुवाद:
हे पक्षीवाहिनी, मोहिनी और चक्रधारिणी! आप प्रेम को बढ़ाने वाली और ज्ञानस्वरूप हैं।
आप गुणों की खान, लोक-हित में रत और संगीत में सप्तस्वर से सजी हुई हैं।
देव, असुर, ऋषि, मुनि और मानव — सभी आपके चरणों की वंदना करते हैं।
हे मधुसूदन की प्रिय! हे संतान लक्ष्मी! मेरी रक्षा करें।
6. विजय लक्ष्मी
श्लोक:
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर, भूषित वासित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्करदेशिक मान्यपदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम् ॥6॥
हिंदी अनुवाद:
हे कमल पर विराजमान, सद्गति देने वाली और ज्ञान का विस्तार करने वाली देवी!
आप प्रतिदिन पूजित हैं, कुमकुम से अलंकृत, सुगंधित वाद्यस्वरों से स्तुत्य हैं।
कनकधारा स्तोत्र से पूजित और शंकराचार्य जैसे महान आचार्यों द्वारा वंदित हैं।
हे मधुसूदन की प्रिया! हे विजय लक्ष्मी! मेरी सदा रक्षा करें।
7. विद्या लक्ष्मी
श्लोक:
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥7॥
हिंदी अनुवाद:
हे देवी भारती! हे भार्गवी! आप दुखों का नाश करने वाली और रत्नों से सजी हुई हैं।
आपके कान रत्नजड़ित आभूषणों से सजे हैं और चेहरा शांतिपूर्ण मुस्कान से शोभायमान है।
आप नव निधियाँ देने वाली, कलियुग के दोष हरने वाली और मनचाहा फल देने वाली हैं।
हे मधुसूदन की प्रिय! हे विद्या लक्ष्मी! सदा मेरी रक्षा करें।
8. धन लक्ष्मी
श्लोक:
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥8॥
हिंदी अनुवाद:
ढोल-नगाड़ों की धिम-धिम ध्वनि से गूंजती,
घुँघरू और शंखनाद से पूजित धन लक्ष्मी!
वेद, पुराण और इतिहासों में पूजित और वैदिक धर्म का मार्ग दिखाने वाली।
हे मधुसूदन की प्रिय! हे धन लक्ष्मी! मेरे जीवन की रक्षा करें।
निष्कर्ष
अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम् केवल एक धार्मिक पाठ नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है जो जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन, समृद्धि और शांति लाने में सहायक है। देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूप — आदि, धन, धान्य, गज, संतान, विजय, विद्या और धैर्य लक्ष्मी — हमारे जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस स्तोत्र का श्रद्धा और निष्ठा से पाठ न केवल भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करता है, बल्कि मानसिक दृढ़ता, आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सुख भी सुनिश्चित करता है।
नियमित पाठ, विशेषकर शुक्रवार, पूर्णिमा या लक्ष्मी पूजा जैसे शुभ अवसरों पर करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में शुभत्व का वास होता है। इस स्तोत्र का पाठ हमें याद दिलाता है कि सच्चा वैभव केवल धन में नहीं, बल्कि ज्ञान, धैर्य, प्रेम, और संतुलन में भी है।
अतः यदि आप अपने जीवन में संपूर्ण सुख-समृद्धि की आकांक्षा रखते हैं, तो अष्ट लक्ष्मी स्तोत्र का नित्य पाठ अपनाएं — यह दिव्य स्तोत्र आपको मां लक्ष्मी की आठों कृपाओं से भर देगा।