जाहरवीर गोगाजी चालीसा लिरिक्स – Jaharveer Chalisa Lyrics in Hindi

जाहरवीर चालीसा - Jaharveer Chalisa
जाहरवीर गोगाजी चालीसा लिरिक्स – Jaharveer Chalisa Lyrics in Hindi

जाहरवीर गोगाजी की चालीसा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। गोगाजी, जिन्हें जाहरवीर गोगाजी भी कहा जाता है, राजस्थान और उत्तरी भारत में पूजनीय लोक देवता हैं। वे एक महान योद्धा और नागों के देवता माने जाते हैं। उनकी चालीसा में उनके जीवन, पराक्रम, चमत्कार और भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन किया गया है।

। । दोहा । ।

सुवन केहरी जेवर सुत महाबली रनधीर । ।

बंदौ सुत रानी बाछला विपत निवारण वीर । ।

जय जय जय चौहान वंश गूगा वीर अनूप । ।

अनंगपाल को जीतकर आप बने सुर भूप । ।

॥ चौपाई ॥
जय जय जय जाहर रणधीरा , पर दुख भंजन बागड़ वीरा । ।
गुरु गोरख का है वरदानी , जाहरवीर जोधा लासानी ।
गौरवरण मुख महा विशाला , माथे मुकट घुंघराले बाला ।
कांधे धनुष गले तुलसी माला , कमर कृपान रक्षा को डाला ।
जन्में गूगावीर जग जाना , ईसवी सन हजार दरमियाना ।
श्री जाहरवीर चालीसा बल सागर गुण निधि कुमारा , दुःखी जनों का बना सहारा ।
बागड़ पति बाछला नन्दन , जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन ।
जेवर राव का पुत्र कहाये , माता पिता के नाम बढ़ाये ।

पूरन हुई कामना सारी , जिसने विनती करी तुम्हारी । ।
सन्त उबारे असुर संहारे , भक्त जनों के काज संवारे ।
गूगावीर की अजब कहानी , जिसको ब्याही श्रीयल रानी ।
बाछल रानी जेवर राना , महादुःखी थे बिन सन्ताना । ।
भंगिन ने जब बोली मारी , जीवन हो गया उनको भारी ।
सूखा बाग पड़ा नौलखा , देख – देख जग का मन दुक्खा ।
कुछ दिन पीछे साधू आये , चेला चेली संग में लाये ।
जेवर राव ने कुआं बनवाया , उद्घाटन जब करना चाहा । ।
खारी नीर कुएं से निकला , राजा रानी का मन पिघला ।
रानी तब ज्योतिषी बुलवाया , कौन पाप मैं पुत्र न पाया ।
कोई उपाय हमको बतलाओ , उन कहा गोरख गुरु मनाओ ।
गुरु गोरख जो खुश हो जाई , सन्तान पाना मुश्किल नाई ।
बाछल रानी गोरख गुन गावे , नेम धर्म को न बिसरावे ।
करे तपस्या दिन और राती , एक वक्त खाय रूखी चपाती ।
कार्तिक माघ में करे स्नाना , व्रत इकादशी नहीं भुलाना । ।
पूरनमासी व्रत नहीं छोड़े , दान पुण्य से मुख नहीं मोड़े ।
चेलों के संग गोरख आये , नौलखे में तम्बू तनवाये । ।
मीठा नीर कुएँ का कीना , सूखा बाग हरा कर दीना ।
मेवा फल सब साधु खाए , अपने गुरु के गुण को गाये ।
औघड़ भिक्षा मांगने आए , बाछल रानी ने दुःख सुनाये । ।
औघड़ जान लियो मन माहीं , तप बल से कुछ मुश्किल नाहीं । ।
रानी होवे मनसा पूरी , गुरु शरण है बहुत जरूरी ।
बारह बरस जपा गुरु नामा , तब गोरख ने मन में जाना ।
पुत्र देने की हामी भर ली , पूरनमासी निश्चय कर ली ।
काछल कपटिने गजब गुजारा , धोखा गुरु संग किया करारा ।
बाछल बनकर पुत्र पाया , बहन का दरद जरा नहीं आया ।
औघड़ गुरु को भेद बताया , तब बाछल ने गूगल पाया ।
कर परसादी दिया गूगल दाना , अब तुम पुत्र जनो मरदाना ।
लीली घोड़ी और पण्डतानी , लूना दासी ने भी जानी ।
रानी गूगल बाट के खाई , सब बांझों को मिली दवाई ।
नरसिंह पंडित लीला घोड़ा , भज्जु कुतवाल जना रणधीरा । ।
रूप विकट धर सब ही डरावे , जाहरवीर के मन को भावे ।
भादों कृष्ण जब नौमी आई , जेवर राव के बजी बधाई ।
विवाह हुआ गूगा भये राना , संगलदीप में बने मेहमाना ।
रानी श्रीयल संग ले फेरे , जाहर राज बागड़ का करे ।
अरजन सरजन जने , गूगा वीर से रहे वे तने । ।
दिल्ली गए लड़ने के काजा , अनंग पाल चढे महाराजा ।
उसने घेरी बागड़ सारी , जाहरवीर न हिम्मत हारी । ।
अरजन सरजन जान से मारे , अनंगपाल ने शस्त्र डारे ।
चरण पकड़कर पिण्ड छुड़ाया , सिंह भवन माड़ी बनवाया ।
उसी में गूगावीर समाये , गोरख टीला धूनी रमाये ।
पुण्यवान सेवक वहाँ आये , तन मन धन से सेवा लाए ।
मनसा पूरी उनकी होई , गूगावीर को सुमरे जोई ।
चालीस दिन पढ़े जाहर चालीसा , सारे कष्ट हरे जगदीसा ।
दूध पूत उन्हें दे विधाता , कृपा करे गुरु गोरखनाथा ।

जाहरवीर गोगाजी की चालीसा का महत्व

1. जाहरवीर गोगाजी के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक: जाहरवीर गोगाजी चालीसा उनके प्रति भक्तों की गहरी आस्था और सम्मान का प्रतीक है। इसे पढ़ने से भक्त अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं और उनसे कृपा की कामना करते हैं।

2. सांपों से रक्षा का विश्वास: जाहरवीर गोगाजी को नागों का देवता माना जाता है। चालीसा के पाठ का विशेष महत्व उन क्षेत्रों में है जहां सांपों का प्रकोप अधिक होता है। माना जाता है कि गोगाजी की कृपा से सांपों का विष और भय दूर हो जाता है।

3. मनोकामना पूर्ति: जाहरवीर गोगाजी की चालीसा को सच्चे मन से पढ़ने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों द्वारा पढ़ी जाती है जो अपने परिवार की सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करते हैं।

4. धार्मिक एकता का प्रतीक: जाहरवीर गोगाजी की पूजा हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा की जाती है। उन्हें मुस्लिम समुदाय में जाहर पीर के नाम से जाना जाता है। चालीसा का पाठ इस धार्मिक एकता और समरसता को दर्शाता है।

5. सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा: जाहरवीर गोगाजी की चालीसा लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पीढ़ी दर पीढ़ी गाई जाती है। यह लोक संगीत और परंपराओं को जीवित रखने में मदद करती है।

6. चेतना और साहस का स्रोत: चालीसा के माध्यम से गोगाजी के पराक्रम और संघर्ष की गाथा सुनाई जाती है। यह भक्तों को साहस और धैर्य के साथ जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा देती है।

पाठ कब और कैसे करें ? जाहरवीर गोगाजी की चालीसा का

1. विशेष अवसर: गोगा नवमी और अन्य धार्मिक अवसरों पर इसका पाठ अधिक प्रचलित है।
2. पवित्रता: इसे पढ़ने से पहले स्नान करना और पवित्र मन से पूजा स्थल पर बैठना आवश्यक माना जाता है।
3. नियमित पाठ: नियमित रूप से इसका पाठ करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

जाहरवीर गोगाजी का जीवन परिचय

जन्म: गोगाजी का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। वे चौहान वंश के राजपूत थे। उनके पिता का नाम जीवराज और माता का नाम बाछलदे था।

जन्म कथा: माना जाता है कि बाछलदे ने संतान प्राप्ति के लिए गोरखनाथ जी की तपस्या की थी। उनकी कृपा से गोगाजी का जन्म हुआ। गोरखनाथ जी के आशीर्वाद के कारण गोगाजी का जीवन दिव्य शक्तियों और चमत्कारों से भरा हुआ था।

शक्ति और चमत्कार: गोगाजी को नाग देवता का वरदान प्राप्त था। वे नागों पर पूर्ण अधिकार रखते थे। कहा जाता है कि उनके पास एक दिव्य सर्प-चिह्नित दंड था, जिससे वे नागों को नियंत्रित करते थे।

सामाजिक योगदान: गोगाजी ने अपने जीवनकाल में न केवल नागों की रक्षा की, बल्कि समाज में न्याय और भाईचारे की स्थापना भी की। वे जात-पात और भेदभाव के खिलाफ थे।

जाहरवीर गोगाजी के मंदिर

मुख्य स्थल: गोगाजी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के गोगामेड़ी (हनुमानगढ़ जिले) में स्थित है। यह स्थान उनकी समाधि स्थल माना जाता है।
गोगा नवमी: गोगाजी की पूजा का सबसे बड़ा त्योहार भाद्रपद मास की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसे गोगा नवमी कहते हैं। इस दिन भक्त विशेष अनुष्ठान करते हैं और गोगाजी की चालीसा और भजन गाते हैं।
मंदिर की विशेषता: उनकी दरगाह पर नीले और पीले झंडे लगाए जाते हैं, जो उनकी आध्यात्मिक शक्ति और धार्मिक एकता का प्रतीक हैं।

जाहरवीर गोगाजी से जुड़ी मान्यताएं

सर्पदंश से सुरक्षा: जाहरवीर गोगाजी की पूजा करने वाले भक्तों का विश्वास है कि उनकी कृपा से सर्पदंश का असर नहीं होता। उनके नाम का स्मरण करना भी सांपों से रक्षा करता है।

गोरक्षा: गोगाजी को गोरक्षक कहा जाता है। वे गायों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने के लिए प्रसिद्ध हैं।

सामाजिक समरसता: गोगाजी का जीवन संदेश जातिवाद और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ है। उनकी पूजा में हर वर्ग और धर्म के लोग शामिल होते हैं।

जाहरवीर गोगाजी की छवि और प्रतीक

युद्ध का रूप: गोगाजी को एक योद्धा के रूप में दिखाया जाता है, जो घोड़े पर सवार हैं। उनके हाथ में भाला होता है और उनके साथ नाग होते हैं।

सांपों का चिह्न: गोगाजी के झंडे और प्रतीकों पर सर्प का चिन्ह होता है, जो उनकी नागों पर शक्ति का प्रतीक है।

उपसंहार

जाहरवीर गोगाजी एक ऐसे लोक देवता हैं, जिनकी पूजा न केवल धार्मिक उद्देश्य से की जाती है, बल्कि उनके जीवन के आदर्शों से प्रेरणा भी ली जाती है। वे साहस, न्याय, और करुणा के प्रतीक हैं। उनकी पूजा के माध्यम से लोग भाईचारे, शांति, और समाज में समानता का संदेश प्राप्त करते हैं।

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