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Toggleमाता अन्नपूर्णा का परिचय और उनकी उत्पत्ति की कथा | Mata Annapurna Story in Hindi
माता अन्नपूर्णा कौन हैं?
माता अन्नपूर्णा हिंदू धर्म में अन्न और पोषण की देवी मानी जाती हैं। ‘अन्न’ का अर्थ है भोजन और ‘पूर्णा’ का अर्थ है संपूर्ण या परिपूर्ण। इस प्रकार माता अन्नपूर्णा का नाम ही यह दर्शाता है कि वे समस्त जगत को अन्न प्रदान करने वाली हैं। वे माता पार्वती का ही एक रूप हैं और अन्न, समृद्धि, और दया की देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
हिंदू मान्यता के अनुसार, अन्न केवल शरीर को ऊर्जा देने वाला माध्यम नहीं, बल्कि एक ईश्वर प्रदत्त वरदान है। माता अन्नपूर्णा का दर्शन इस भावना को पुष्ट करता है कि भोजन का सम्मान करना, उसका आदर करना, और उसे सभी में समान रूप से बाँटना एक पुण्य कर्म है।
माता अन्नपूर्णा की उत्पत्ति की कथा
प्राचीन काल की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि यह सारा संसार माया है – एक भ्रम मात्र। उन्होंने यह भी कहा कि भोजन का भी कोई स्थायी अस्तित्व नहीं है, यह भी माया है।
माता पार्वती इस विचार से असहमत थीं। उन्हें लगा कि यदि भोजन ही माया है, तो यह सृष्टि का आधार कैसे बन सकता है? संसार का प्रत्येक प्राणी तो भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने भगवान शिव को यह समझाने के लिए एक लीला रची।
माता पार्वती ने समस्त संसार से अन्न की आपूर्ति को रोक दिया। देखते ही देखते, धरती पर अकाल पड़ गया। जीव-जंतु, ऋषि-मुनि, राजा-प्रजा—सब भूख से व्याकुल हो उठे। यहां तक कि भगवान शिव भी इस भूख की पीड़ा से व्यथित हो उठे।
उस समय माता पार्वती ने “अन्नपूर्णा देवी” का रूप धारण किया और काशी नगरी (वाराणसी) में प्रकट हुईं। उन्होंने एक स्वर्ण पात्र में अन्न रखा और स्वयं अपने हाथों से जरूरतमंदों को भोजन देना प्रारंभ किया। जब भगवान शिव को भूख लगी, वे स्वयं माता अन्नपूर्णा के पास गए और अन्न की याचना की। माता ने उन्हें भोजन प्रदान किया।
इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
इस कथा के माध्यम से एक गूढ़ संदेश दिया गया है—भोजन मात्र शरीर की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक दिव्य शक्ति है। इसे कभी भी तुच्छ या माया नहीं समझना चाहिए। भोजन का आदर करना और दूसरों को भोजन कराना, ईश्वर की सेवा के समान है।
माता अन्नपूर्णा और काशी नगरी का दिव्य संबंध
वाराणसी (काशी) को केवल भगवान शिव की नगरी ही नहीं, बल्कि माता अन्नपूर्णा का भी दिव्य धाम माना जाता है। यहाँ स्थित माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
काशी में माता अन्नपूर्णा का मंदिर
काशी के विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित अन्नपूर्णा मंदिर में माता का दर्शन करने से न केवल भोजन का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि जीवन में समृद्धि और संतुलन भी आता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माता अन्नपूर्णा की पूजा करता है, उसके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अन्न ग्रहण करके यह स्वीकार किया कि संसार में भोजन की महत्ता सर्वोपरि है। इसीलिए काशी नगरी में माता अन्नपूर्णा का विशेष स्थान है और उनका मंदिर दान, सेवा और अन्न की महिमा का प्रतीक माना जाता है।
माता अन्नपूर्णा की पूजा विधि और व्रत का महत्व
पूजा का श्रेष्ठ समय:
माता अन्नपूर्णा की पूजा चैत्र मास में विशेष रूप से की जाती है, विशेषकर अन्नपूर्णा जयंती के दिन। यह पर्व पूर्णिमा को आता है और इसे अन्न के महत्व और दान की भावना से जोड़ा जाता है।
पूजा विधि:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
माता अन्नपूर्णा की मूर्ति या चित्र को गंगाजल से शुद्ध करें।
चावल, गेहूं, और अन्न के अन्य रूपों को माता के चरणों में अर्पित करें।
घी का दीपक जलाएं और “ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राणवल्लभे” मंत्र का जाप करें।
श्रद्धा से भोग लगाएं – विशेषकर खिचड़ी, हलवा या कोई सात्विक अन्न।
पूजा के बाद अन्न का दान किसी ज़रूरतमंद को करें।
व्रत का महत्व:
माता अन्नपूर्णा का व्रत रखने से:
घर में अन्न की कभी कमी नहीं होती है।
परिवार में समृद्धि और संतोष बना रहता है।
मन में सेवा की भावना जागृत होती है।
माता अन्नपूर्णा का दिव्य स्वरूप और अन्य प्रमुख मंदिर
माता अन्नपूर्णा का स्वरूप
माता अन्नपूर्णा को अत्यंत शांत, सौम्य और करुणामयी देवी के रूप में दर्शाया जाता है। उनके स्वरूप की विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
माता के एक हाथ में स्वर्ण पात्र (भोजन से भरा हुआ कटोरा) होता है।
दूसरे हाथ में वे अक्षयपात्र (चम्मच या करछुल) धारण करती हैं, जिससे वे अन्न प्रदान करती हैं।
उनका वाहन सिंह माना जाता है, जो शक्ति का प्रतीक है।
उनके मुख पर एक दिव्य तेज और संतोष का भाव होता है, जिससे यह अनुभूति होती है कि वे माँ अन्नपूर्णा वास्तव में सबका पालन-पोषण करती हैं।
माता का यह रूप यह दर्शाता है कि भोजन केवल शारीरिक ज़रूरत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक उपहार है, जिसे माता स्वयं अपने कर-कमलों से देती हैं।
अन्य प्रमुख अन्नपूर्णा मंदिर
हालाँकि वाराणसी का अन्नपूर्णा मंदिर सबसे प्रसिद्ध है, भारत में अन्य कई स्थानों पर भी माता अन्नपूर्णा के मंदिर स्थित हैं:
हिम्मतनगर, गुजरात – यहाँ अन्नपूर्णा माता का मंदिर अति प्राचीन और चमत्कारिक माना जाता है।
इंदौर, मध्यप्रदेश – अन्नपूर्णा मंदिर इंदौर का प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहाँ माता की 100 फीट ऊँची प्रतिमा दर्शनीय है।
कोयंबटूर, तमिलनाडु – दक्षिण भारत में भी माता के कई मंदिर हैं, जो अन्न दान और सेवा के कार्यों से जुड़े हुए हैं।
हैदराबाद, तेलंगाना – यहाँ अन्नपूर्णेश्वरी देवी मंदिर माँ की भव्य आरती और महाप्रसाद के लिए प्रसिद्ध है।
इन सभी मंदिरों में अन्न दान को सर्वोपरि धर्म माना जाता है और प्रतिदिन सैकड़ों भक्तों को निःशुल्क भोजन कराया जाता है।
माता अन्नपूर्णा की कृपा के लाभ
घर में अन्न, धन और शांति बनी रहती है।
भोजन का अपमान नहीं होता, अन्न का आदर होता है।
सभी सदस्यों में करुणा और सेवा भावना बढ़ती है।
अन्न का दान करने से पुण्य प्राप्त होता है, और पितृदोष भी शांत होते हैं।
अन्नपूर्णा स्तोत्रम् – Annapoorna Stotram (हिंदी अनुवाद सहित)
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥
जो सदा आनंद प्रदान करती हैं, वरदान देती हैं, भय से मुक्ति देती हैं,
जो सौंदर्य की रत्नमाला हैं,
जो समस्त घोर पापों का नाश करती हैं और प्रत्यक्ष रूप से महेश्वरी हैं,
जो हिमालय वंश को पावन करती हैं और काशी की अधीश्वरी हैं—
हे कृपालु अन्नपूर्णा माता, मुझे भिक्षा दें।
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥
जो विविध रत्नों से अलंकृत हैं, स्वर्ण वस्त्रों से विभूषित हैं,
जिनके गले में मुक्तामाला है और वक्षस्थल दिव्य तेज से युक्त है,
जिनके अंगों में कश्मीरी अगरु की सुगंध बसी है,
हे काशी की अधीश्वरी अन्नपूर्णा माता, मुझे भिक्षा दें।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥
जो योग में आनंद देने वाली हैं, शत्रुओं का विनाश करने वाली हैं,
धर्म और अर्थ में स्थित करती हैं,
जिनकी ज्योति चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान है,
जो तीनों लोकों की रक्षा करती हैं—
हे कृपामयी अन्नपूर्णा, मुझे भिक्षा दें।
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥
जो कैलाश पर्वत की गुफाओं में निवास करती हैं,
जो गौरी, उमा और शंकर की अर्धांगिनी हैं,
जो वेदों के गूढ़ अर्थ को समझने योग्य हैं, ओंकार स्वरूपा हैं,
जो मोक्ष के द्वार खोलती हैं—
हे काशी अधीश्वरी अन्नपूर्णा माता, मुझे भिक्षा दें।
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥
जो दृश्य और अदृश्य शक्तियों को चलाती हैं,
जिनकी उदर में समस्त ब्रह्मांड समाया है,
जो इस लीला रूपी संसार की डोर थामे हुए हैं,
जो ज्ञान की दीपशिखा हैं—
हे काशी की रानी, कृपाकर मुझे भिक्षा दें।
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥
जो समस्त जीवों की अधीश्वरी हैं,
जिनकी वेणी नीले रंग के केशों जैसी है,
जो सदा अन्न का दान करती हैं,
जो सबको आनंद देती हैं, सदा कल्याण करती हैं
हे माता अन्नपूर्णा, मुझे भिक्षा दें।
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥
जो आदि से अंत तक सब वर्णों की सृजना करती हैं,
जो शंभु की त्रिविध शक्तियाँ हैं,
जो त्रैलोक्य की धारिणी हैं,
जो हमेशा प्रकट रहती हैं,
जो सभी की इच्छाएं पूरी करती हैं
हे काशीपुराधीश्वरी, मुझे भिक्षा दें।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥
जो अद्भुत रत्नों से बनी हुई हैं, दक्ष की कन्या, सुंदर स्वरूपा हैं,
जिनके स्तन वाम भाग में स्थित हैं,
जो सौभाग्य देने वाली महेश्वरी हैं,
जो भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं—
हे कृपालु अन्नपूर्णा माता, मुझे भिक्षा दें।
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥
जो करोड़ों चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी हैं,
जो चंद्रमा के समान मुखवाली हैं,
जिनके केश चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान दीप्त हैं,
जो हाथ में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण करती हैं—
हे अन्नपूर्णा देवी, कृपाकर मुझे भिक्षा दें।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥
जो क्षत्रियों की रक्षक हैं, महान अभय देने वाली हैं,
जो कृपा की सागर हैं, साक्षात मोक्ष प्रदायिनी हैं,
जो सदा शिव स्वरूपा हैं, विश्वेश्वर की शोभा हैं,
जो दक्ष को रुलाने वाली और रोगों का नाश करने वाली हैं—
हे माता अन्नपूर्णा, मुझे भिक्षा दें।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥
हे अन्नपूर्णा, सदा पूर्ण रहने वाली,
शंकर के प्राणों की प्रिय,
ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि हेतु,
हे पार्वती, मुझे भिक्षा दें।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥
– श्री शङ्कराचार्य कृतं
मेरी माता पार्वती हैं, पिता देवों के देव महेश्वर हैं,
मेरे बंधु शिव भक्त हैं,
और यह संपूर्ण त्रिलोकी ही मेरा देश है।
(रचना: आदिगुरु श्री शंकराचार्य)
माँ अन्नपूर्णा की आरती – Maa Annapurna Aarti
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके,
कहां उसे विश्राम ।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो,
लेत होत सब काम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर,
कालान्तर तक नाम ।
सुर सुरों की रचना करती,
कहाँ कृष्ण कहाँ राम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
चूमहि चरण चतुर चतुरानन,
चारु चक्रधर श्याम ।
चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर,
शोभा लखहि ललाम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
देवि देव! दयनीय दशा में,
दया-दया तब नाम ।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल,
शरण रूप तब धाम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या,
श्री क्लीं कमला काम ।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी,
वर दे तू निष्काम ॥
बारम्बार प्रणाम,
मैया बारम्बार प्रणाम ।
॥ माता अन्नपूर्णा की जय ॥
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न – माता अन्नपूर्णा के बारे में
1. क्या माता अन्नपूर्णा, माता पार्वती का ही रूप हैं?
हाँ। माता अन्नपूर्णा, माता पार्वती का ही अन्न देने वाला दिव्य रूप हैं। उन्होंने भगवान शिव को भी अन्न का महत्व समझाया था।
2. माता अन्नपूर्णा की पूजा कब की जाती है?
अन्नपूर्णा जयंती, जो चैत्र पूर्णिमा को आती है, उस दिन माता की विशेष पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त नवरात्रि में भी इनकी पूजा लाभकारी मानी जाती है।
3. क्या माता अन्नपूर्णा की पूजा से घर में अन्न की कमी नहीं होती?
बिलकुल। मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धा से माता की पूजा करता है, उसके घर में कभी अन्न का अभाव नहीं होता।
4. क्या माता अन्नपूर्णा को अन्न का भोग लगाना आवश्यक होता है?
हाँ। माता अन्नपूर्णा को खिचड़ी, चावल, दाल, या हलवा जैसे सात्विक अन्नों का भोग अर्पण करना विशेष फलदायी माना जाता है।
5. क्या अन्न दान करने से पुण्य प्राप्त होता है?
जी हाँ। अन्न दान को हिंदू धर्म में श्रेष्ठ दान कहा गया है। इससे न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि पितरों को तृप्ति भी मिलती है।
6. क्या माता अन्नपूर्णा का कोई विशेष मंत्र है?
हाँ, इनका एक लोकप्रिय मंत्र है:
“ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राणवल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥”
इस मंत्र का जाप करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
माता अन्नपूर्णा न केवल भोजन की देवी हैं, बल्कि करुणा, सेवा और संतोष की प्रतीक भी हैं। उनके स्मरण और सेवा से जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि का वास होता है। आइए हम सब यह संकल्प लें कि अन्न का आदर करेंगे, अपमान नहीं, और यथासंभव अन्न दान करके पुण्य अर्जित करेंगे।