करणी माता देशनोक मंदिर का इतिहास, महिमा, चमत्कार और चूहों वाला रहस्य | Karni Mata Temple Deshnok History, Miracles and the Mystery of Rats

करणी माता

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करणी माता – चमत्कार, श्रद्धा और रहस्य की देवी

भारतवर्ष की संस्कृति देवी-देवताओं की विविधताओं से भरी हुई है। यहाँ हर क्षेत्र, हर राज्य, और हर गाँव में कोई न कोई चमत्कारी शक्ति, सिद्ध पुरुष या अवतारी देवी विद्यमान रही है, जिनकी कथाएँ केवल धार्मिक ग्रंथों में नहीं, बल्कि जनमानस के हृदय में गहराई से समाई हुई हैं। इन कथाओं में एक ऐसा नाम भी आता है जो केवल आस्था का नहीं, बल्कि रहस्य और चमत्कार का प्रतीक बन चुका है – करणी माता

राजस्थान की तपती रेत में स्थित देशनोक गाँव में विराजमान करणी माता का मंदिर न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है, बल्कि वह विश्व में अपने प्रकार का अद्वितीय मंदिर है जहाँ देवी के साथ-साथ हजारों चूहों की पूजा होती है। ये चूहे केवल जीव नहीं, बल्कि देवी के भक्त और उनके वंशज माने जाते हैं। यहाँ की मान्यता है कि ये चूहे पुनर्जन्म लेकर मंदिर में रहते हैं और माता की सेवा करते हैं।

करणी माता को “राजस्थान की कुलदेवी”, “चमत्कारी संत देवी”, और “चूहों वाली देवी” जैसे अनेक नामों से पुकारा जाता है। उनकी ख्याति न केवल राजस्थान तक सीमित है, बल्कि देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु देशनोक पहुंचते हैं – केवल एक झलक पाने के लिए, केवल एक आशीर्वाद की आशा में।

करणी माता की जन्म कथा

जन्म स्थान और समय

करणी माता का जन्म 1387 ई. में चारण जाति के मेहा जी और देवल देवी के घर हुआ था। यह स्थान वर्तमान राजस्थान के सुवाप गांव (जोधपुर ज़िले में) स्थित है। उनका वास्तविक नाम रिद्धुबाई था, लेकिन उनकी तपस्वी प्रवृत्ति और चमत्कारी शक्तियों के कारण उन्हें बाद में “करणी माता” कहा गया।

बचपन से ही देवी तुल्य लक्षण

कहा जाता है कि उनका बचपन असामान्य था। वे बहुत कम बोलती थीं, हमेशा ध्यान में मग्न रहती थीं और छोटी उम्र से ही उपवास करने लगी थीं। उनके शरीर से दिव्य आभा निकलती थी और गाँववाले उन्हें देवी का रूप मानने लगे थे।

विवाह और त्याग

करणी माता का विवाह सातिया चारण से हुआ था, लेकिन उन्होंने गृहस्थ जीवन को अस्वीकार कर दिया और अपनी छोटी बहन को पति के साथ विवाह करवा दिया। स्वयं तपस्वी जीवन स्वीकार करते हुए वे सामाजिक सेवा, ध्यान, और भक्ति मार्ग में लीन हो गईं।

देशनोक करणी माता मंदिर का इतिहास

मंदिर की स्थापना

करणी माता का प्रमुख मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में शुरू हुआ था, जब बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने करणी माता को अपना कुलदेवी माना और उनकी कृपा से अनेक विजयें प्राप्त कीं।

स्थापत्य कला और प्रवेश द्वार

मंदिर संगमरमर की नक्काशी से सजा हुआ है। इसके द्वार चांदी से बने हैं, जिन पर देवी की कथाएँ उकेरी गई हैं। मंदिर की छत और खंभों पर सुंदर चित्रकारी है। मुख्य गर्भगृह में करणी माता की चांदी की मूर्ति स्थित है।

चूहों का रहस्य: मंदिर के सबसे अनोखे भक्त

हजारों चूहे और उनकी मान्यता

इस मंदिर में लगभग 25,000 काले चूहे स्वतंत्र रूप से रहते हैं और भक्त उन्हें ‘काबा’ कहकर सम्मान देते हैं। इन चूहों को दूध, लड्डू, मिठाई और अनाज चढ़ाया जाता है। कोई उन्हें भगाता नहीं, बल्कि उनकी सेवा करता है।

एक सफेद चूहे की झलक

मान्यता है कि मंदिर में कुछ सफेद चूहे भी हैं, जिन्हें देवी का रूप माना जाता है। यदि किसी भक्त को सफेद चूहे के दर्शन हो जाएं तो यह अत्यंत शुभ और दुर्लभ माना जाता है।

चूहों की उत्पत्ति कथा

एक बार करणी माता का एक पुत्र जलकुंड में डूब गया। करणी माता ने यमराज से उसे वापस माँगा। यमराज ने मना किया, पर देवी के आग्रह पर उस पुत्र और उनके कुल के लोगों को पुनर्जन्म में चूहे का रूप दिया और मंदिर में वास का वरदान मिला।

अलौकिक लक्षण और दिव्यता

करणी माता के बारे में मान्यता है कि वे शेरनी के साथ खेलती थीं।

उनके शरीर से एक दिव्य आभा निकलती थी, जिससे लोग आकर्षित हो जाते थे।

छोटी उम्र में ही वे भविष्यवाणी करने लगी थीं, जो समय के साथ सच साबित होती थीं।

वे पशु-पक्षियों, वृक्षों और प्रकृति से संवाद कर सकती थीं – ऐसा विश्वास है।

करणी माता के चमत्कार

1. बीकानेर राज्य की स्थापना

करणी माता ने राव बीका को बीकानेर राज्य की स्थापना में मार्गदर्शन दिया। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि बीकानेर की सीमाएँ बढ़ेंगी और यह राज्य शक्तिशाली बनेगा – जो पूर्णत: सत्य हुआ।

2. अकाल से मुक्ति

जब राजस्थान में भीषण अकाल पड़ा, तब करणी माता की कृपा से देशनोक और आसपास के गाँवों में वर्षा हुई, जिससे फसलें लहलहाईं।

3. रोगों से मुक्ति

भक्तों का मानना है कि करणी माता की कृपा से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। कई भक्त चूहों का चरणामृत लेकर स्वास्थ्य लाभ पाते हैं।

4. रेल पटरियों पर मंदिर

अनोखा तथ्य यह है कि करणी माता का मंदिर रेल पटरियों के बीचोंबीच स्थित है, फिर भी कभी कोई दुर्घटना नहीं होती। रेलगाड़ी मंदिर के पास धीमे होकर निकलती है – यह भी माता की कृपा का प्रतीक माना जाता है।

करणी माता की पूजा विधि

माता के चरणों में दूध, मिठाई और नारियल चढ़ाएं।

चूहों को भोजन कराएं, उन्हें दुलारें।

“जय करणी माता” का जाप करें।

मंदिर के अंदर फोटो न खींचें – यह वर्जित माना जाता है।

विशेष पर्व और मेला

नवरात्रि में विशेष पूजा होती है और लाखों श्रद्धालु आते हैं।

करणी माता मेला साल में दो बार लगता है – चैत्र और अश्विन नवरात्र में।

सिद्धियाँ और चमत्कारी घटनाएँ

करणी माता के जीवन में अनेक चमत्कार हुए जो आज भी श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हैं:

जल में डूबे बालक को पुनर्जीवित करना: जब उनकी सौतेली बहन का पुत्र एक जलाशय में डूब गया, तब करणी माता ने यमराज से आग्रह कर उसे जीवित कराया और उसे चूहे के रूप में पुनर्जन्म दिलाया।

रोगियों को ठीक करना: कई बार गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोग, माता के दर्शन मात्र से स्वस्थ हो गए।

भविष्यवाणी करना: युद्ध, अकाल, सूखा, और राजनीतिक घटनाओं के बारे में उन्होंने पहले से बता दिया था।

देशनोक मंदिर का इतिहास और स्थापत्य – करणी माता की शक्ति का भव्य धाम

राजस्थान की रेत से उठती हवाओं में करणी माता का नाम केवल भक्ति नहीं, बल्कि चमत्कार और रहस्य की गूंज भी है। देशनोक स्थित करणी माता मंदिर उनकी दिव्यता, चमत्कार और जनविश्वास का एक जीवंत प्रतीक है। यह मंदिर विश्वभर में “चूहों वाला मंदिर” (Temple of Rats) के नाम से प्रसिद्ध है। लेकिन इस अद्भुत मंदिर का इतिहास और स्थापत्य अपनी आस्था और शिल्प की दृष्टि से कहीं अधिक व्यापक और गहन है।

मंदिर का स्थान और पहुंच

करणी माता मंदिर राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले के देशनोक कस्बे में स्थित है। यह बीकानेर शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए बीकानेर रेलवे स्टेशन से सीधी बसें, टैक्सी और स्थानीय वाहन उपलब्ध हैं।

मंदिर का निर्माण और इतिहास

इस मंदिर का निर्माण सबसे पहले करणी माता के भक्त राजा गंगा सिंह (बीकानेर रियासत के शासक) द्वारा 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में कराया गया था। हालांकि करणी माता की पूजा और मान्यता 15वीं शताब्दी से ही देशनोक में चल रही थी, लेकिन मंदिर का वर्तमान संगमरमरयुक्त स्वरूप 1900 के दशक में अस्तित्व में आया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

करणी माता ने स्वयं देशनोक को अपनी तपोभूमि बनाया था।

यह स्थान पहले वीरान और शुष्क भूमि थी, लेकिन उनकी उपस्थिति से यह क्षेत्र पवित्र तीर्थ बन गया।

उनके समाधि स्थल को ही मंदिर के रूप में विकसित किया गया।

स्थापत्य कला और शिल्प सौंदर्य

देशनोक का करणी माता मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि एक वास्तुकला का चमत्कार भी है।

मुख्य द्वार (मुख्य प्रवेश द्वार)

मुख्य द्वार सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है और उस पर चांदी की पच्चीकारी की गई है।

द्वार के ऊपरी भाग पर शेर पर सवार करणी माता की छवि अंकित है।

यहाँ के द्वार पर गर्भगृह की रक्षा करने वाले द्वारपाल भी उकेरे गए हैं।

गर्भगृह (Sanctum)

मंदिर के गर्भगृह में करणी माता की चांदी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।

माता के चरणों के पास मंत्रोच्चार और भोग की थालियों के साथ श्रद्धालु पूजन करते हैं।

गर्भगृह में चूहों का जमावड़ा हमेशा बना रहता है।

मंदिर परिसर

पूरा मंदिर परिसर संगमरमर की चिकनी फर्श और नक्काशीदार खंभों से सुसज्जित है।

शेर की मूर्तियाँ जगह-जगह रखी गई हैं – जो करणी माता के वाहन माने जाते हैं।

दीवारों पर राजस्थानी शैली की चित्रकारी की गई है, जो देवी के जीवन और चमत्कारों को दर्शाती है।

मंदिर की अनूठी विशेषता: चूहों का साम्राज्य

लगभग 25,000 चूहे

यह मंदिर विश्वभर में इसीलिए अनोखा है क्योंकि यहाँ हजारों काले चूहे (काबा) स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं। भक्त इन चूहों को भोग अर्पित करते हैं और यदि कोई चूहा उनके शरीर पर चढ़ जाए, तो उसे शुभ संकेत माना जाता है।

सफेद चूहा – देवी का संकेत

कभी-कभी मंदिर में 1 या 2 सफेद चूहे भी दिखाई देते हैं। मान्यता है कि यह करणी माता और उनके पुत्रों के आध्यात्मिक रूप हैं। यदि किसी श्रद्धालु को सफेद चूहे के दर्शन हो जाएँ, तो इसे देवी की विशेष कृपा का प्रतीक माना जाता है।

चूहों का भोजन

दूध, लड्डू, चावल, रोटियाँ – ये सब श्रद्धालु विशेष रूप से चूहों को अर्पण करते हैं।

भक्त यह भी मानते हैं कि चूहों द्वारा छोड़ा गया प्रसाद अमृत तुल्य होता है, और उसे ग्रहण करना पुण्यकारक माना जाता है।

मंदिर के नियम और आस्थाएँ

मंदिर परिसर में किसी भी चूहे को नुकसान पहुँचाना पाप समझा जाता है।

यदि गलती से कोई चूहा मर जाए, तो उस व्यक्ति को चाँदी का चूहा बनवाकर अर्पण करना पड़ता है।

मंदिर में जूते पहनकर प्रवेश वर्जित है, और परिसर में स्वच्छता बनाए रखना आवश्यक होता है।

रेलवे लाइन और मंदिर का संबंध

एक विशेष तथ्य यह है कि मंदिर के बहुत पास से रेलवे लाइन गुजरती है, और इसके बावजूद कभी कोई दुर्घटना नहीं होती। जब ट्रेन मंदिर के पास से गुजरती है तो उसकी रफ्तार धीमी हो जाती है – यह भी करणी माता की कृपा और चमत्कार का जीवंत प्रमाण माना जाता है।

मंदिर की वैश्विक ख्याति

हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर नवरात्रि में।

भारत ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी इस अनोखे मंदिर को देखने आते हैं।

चूहों का रहस्य: क्या है इनके पीछे की कथा?

कथा 1: यमराज से पुनर्जन्म की याचना

करणी माता की सौतेली बहन का पुत्र एक जलकुंड में डूब गया। जब उसका शव मिला, तब माता करणी ने यमराज से आग्रह किया कि वह उस बालक को जीवित करें। यमराज ने कहा, “जो एक बार मृत्यु को प्राप्त हो गया, उसे वापस नहीं किया जा सकता।”

करणी माता ने तपोबल से यमलोक में प्रवेश किया और उस बालक और अपने वंशजों को चूहे के रूप में पुनर्जन्म दिलवाया। साथ ही यह वरदान दिया कि वे सभी उनके मंदिर में निवास करेंगे और कभी मृत्यु के चक्र में वापस नहीं फँसेंगे।

इस कथा के अनुसार, मंदिर में रहने वाले ये चूहे करणी माता के वंशजों की आत्माएँ हैं।

कथा 2: युद्ध में मारे गए योद्धाओं का पुनर्जन्म

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार, करणी माता के अनुयायी जब एक युद्ध में मारे गए, तो माता ने उन्हें चूहों के रूप में पुनर्जन्म दिया, ताकि वे सदा उनके साथ रह सकें। इस कारण से भक्त मानते हैं कि ये चूहे देवी के अंश और दिव्य आत्माएँ हैं।

चूहों का धार्मिक महत्व

1. चूहे = पुनर्जीवित आत्माएँ

यह मान्यता चूहों को केवल जीव या पशु नहीं, बल्कि पूर्वज आत्माओं का प्रतीक बना देती है। यही कारण है कि श्रद्धालु इन्हें पूज्य मानते हैं।

2. अन्नदाता का सम्मान

भक्त मंदिर में दूध, मिठाई, अनाज, रोटियाँ आदि विशेष रूप से इन चूहों के लिए लाते हैं। चूहों द्वारा स्पर्श किया हुआ प्रसाद “काबा प्रसाद” कहलाता है और इसे खाना पुण्यकारी माना जाता है।

3. शुभ संकेत

यदि मंदिर में कोई चूहा आपके ऊपर चढ़ जाए, तो उसे बहुत शुभ संकेत माना जाता है। यह माना जाता है कि करणी माता ने आपको अपनी कृपा दी है।

सफेद चूहे – चमत्कारी दर्शन

काले चूहों के बीच कभी-कभी 1 या 2 सफेद चूहे भी दिखाई देते हैं। यह अत्यंत दुर्लभ दृश्य होता है। मान्यता है कि:

ये करणी माता और उनके पुत्रों का रूप हैं।

जो भी व्यक्ति सफेद चूहे को देखता है, उसे विशेष रूप से भाग्यशाली और कृपाप्राप्त माना जाता है।

श्रद्धालु मानते हैं कि ऐसे दर्शन से मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है।

चूहों को अर्पित किया जाने वाला भोग

दूध और मलाई

गुड़ और गेहूँ

लड्डू, पेड़ा और हलवा

सादा चावल या केसरयुक्त प्रसाद

मंदिर में एक विशेष रसोई बनी हुई है, जहाँ भक्त और पुजारी मिलकर चूहों के लिए भोजन तैयार करते हैं।

चूहे को नुकसान = पाप

यदि कोई व्यक्ति अनजाने में किसी चूहे को कुचल देता है, तो यह एक बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है।

ऐसी स्थिति में उसे चाँदी का चूहा बनवाकर मंदिर को दान करना पड़ता है।

यह प्रतीकात्मक क्षमा याचना होती है, जिससे चूहे की आत्मा को सम्मान मिले।

भक्तों के अनुभव

“जब मैं मंदिर में बैठा था, तब एक चूहा मेरी गोदी में आकर सो गया। मैं रो पड़ा – वह अनुभव माँ की गोद जैसा था।”

“मैंने देखा कि चूहे मुझे चारों ओर से घेरे हुए थे, और एक सफेद चूहा मेरे सामने आया। अगले ही हफ्ते मेरी संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुई।”

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और चमत्कार

वैज्ञानिकों ने भी कई बार इस मंदिर में अध्ययन किया है कि इतनी संख्या में चूहे होने के बावजूद कोई संक्रमण या रोग नहीं फैलता।

इस वातावरण को “भक्ति-ऊर्जा की रक्षा” कहा गया है – जहाँ मनुष्य, पशु और देवी की शक्तियाँ समरस हो जाती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1: करणी माता के मंदिर में चूहे क्यों पूजे जाते हैं?

उत्तर: मान्यता है कि ये चूहे करणी माता के वंशजों की आत्माएँ हैं, जिन्हें उन्होंने चूहे के रूप में पुनर्जन्म दिया था।

Q2: सफेद चूहा दिखना क्यों शुभ माना जाता है?

उत्तर: यह करणी माता या उनके पुत्र का प्रतीक माना जाता है। यह दुर्लभ दर्शन होता है और इसे देवी की विशेष कृपा माना जाता है।

Q3: अगर कोई चूहा गलती से मर जाए तो क्या करना चाहिए?

उत्तर: ऐसा होना अपशकुन माना जाता है। प्रायश्चित स्वरूप चाँदी का चूहा बनवाकर मंदिर को दान करना आवश्यक होता है।

Q4: क्या माता करणी केवल राजस्थान तक सीमित हैं?

उत्तर: नहीं, अब करणी माता के अनुयायी देश-विदेश में हैं। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, यहाँ तक कि अमेरिका और इंग्लैंड में भी उनके भक्त हैं।

Q5: करणी माता की जीवित समाधि कहाँ है?

उत्तर: देशनोक में ही उनका जीवित समाधि स्थल है, जहाँ वे तप करते हुए शरीर त्याग कर समाधिस्थ हुईं।

निष्कर्ष

करणी माता केवल एक देवी नहीं, बल्कि आस्था, चमत्कार और करुणा की जीवंत प्रतिमा हैं। देशनोक मंदिर का वातावरण भक्तों को अद्भुत ऊर्जा और विश्वास से भर देता है। चूहों का रहस्य हो, भक्तों की सच्ची अनुभूतियाँ हों या देवी की शक्तियाँ – करणी माता की उपासना सच्चे मन से की जाए तो वे अवश्य कृपा करती हैं।

करणी माता की आरती

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