माता भिमेश्वरी देवी Mata Bhimeshwari Devi बेरी वाली माता Maa Beri wali – एक प्राचीन शक्तिपीठ

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माता बेरी वाली भीमेश्वरी देवी का मंदिर बेरी झज्जर, हरियाणा में स्थित एक प्राचीन शक्तिपीठ है।

भारत की संस्कृति में शक्ति की उपासना का विशेष स्थान रहा है। देश के कोने-कोने में देवी के विविध रूपों की पूजा होती है, जो आस्था, शक्ति और चमत्कार की प्रतीक होती हैं। हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित माता भीमेश्वरी देवी (Mata Bhimeshwari Devi) का मंदिर न केवल एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, बल्कि इसका संबंध सीधे महाभारत काल और पांडवों से भी जुड़ा हुआ है।

यह मंदिर हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है, विशेषकर नवरात्रों के दौरान, जब यहाँ का वातावरण भक्ति, भजन और श्रद्धा से गूंजता है।

मंदिर की किंवदंती: माता क्यों कहलाती हैं भीमेश्वरी?

मंदिर से जुड़ी एक अत्यंत प्राचीन और लोकप्रिय कथा के अनुसार, देवी को ‘भीमेश्वरी’ नाम इसलिए दिया गया क्योंकि उनकी मूर्ति स्वयं पांडव पुत्र भीम ने स्थापित की थी।

कथा का सार:

महाभारत युद्ध की शुरुआत से पूर्व, भगवान श्रीकृष्ण ने भीम से कहा कि वे अपनी कुलदेवी को युद्ध के मैदान (कुरुक्षेत्र) में लाकर उनका आशीर्वाद लें।

आदेश पाकर, भीम हिंगलाज पर्वत (आज का पाकिस्तान) के निकट गए और देवी से युद्ध में साथ चलने की प्रार्थना की।

माता ने साथ चलने की सहमति दी, लेकिन एक शर्त रखी:

“यदि रास्ते में मेरी मूर्ति को कहीं रखा गया, तो मैं वहीं स्थायी रूप से विराजमान हो जाऊँगी।”

मार्ग में घटित प्रसंग:

लौटते समय, भीम को लघुशंका लगी और उन्होंने माता की मूर्ति को एक ‘बेरी के पेड़’ के नीचे रख दिया।

उसी समय उन्हें प्यास लगी, और पानी की तलाश में उन्होंने अपने घुटने से ज़मीन पर प्रहार किया, जिससे जलधारा फूट पड़ी।

जब भीम ने मूर्ति को फिर से उठाना चाहा, तब उन्हें माता की शर्त याद आई। वे समझ गए कि माता अब यहीं विराजेंगी।

उन्होंने वहीं पर माता को प्रणाम कर आशीर्वाद लिया और कुरुक्षेत्र की ओर निकल गए।

इस प्रकार देवी हिंगलाज पर्वत से आकर बेरी में स्थापित हुईं और ‘भीमेश्वरी’ कहलाईं।

गांधारी द्वारा मंदिर निर्माण

महाभारत युद्ध के बाद जब गांधारी अपने 100 पुत्रों की मृत्यु से शोकाकुल थीं, तो वे आत्मशांति की खोज में बेरी क्षेत्र आईं। यहाँ उन्होंने अपनी कुलदेवी की मूर्ति देखी और पहचान ली।

मुख्य बिंदु:

गांधारी ने तत्काल वहाँ एक मंदिर निर्माण करवाया।

यद्यपि वह प्राचीन मंदिर अब पूर्ण रूप से विद्यमान नहीं है, लेकिन देवी की गद्दी (आसन) आज भी श्रद्धापूर्वक पूजी जाती है।

इस मंदिर को ही माता के प्रथम मंदिर के रूप में माना जाता है।

ऋषि दुर्वासा और माता की उपासना

बेरी क्षेत्र कभी घने जंगलों से भरा हुआ था। वहीं ऋषि दुर्वासा, जो एक महान तपस्वी और सिद्ध महापुरुष थे, निवास करते थे।

ऋषि दुर्वासा का योगदान:

वे माता के परम भक्त थे और हर दिन देवी की मूर्ति की आरती, पूजा, ध्यान और प्रतिष्ठा करते थे।

घने जंगल होने के कारण वे प्रातःकाल मूर्ति को बाहरी मंदिर (जहाँ अब मुख्य मंदिर है) में लाते और दोपहर बाद आंतरिक मंदिर (जहाँ गद्दी है) में वापस ले जाते।

यह मूर्ति स्थानांतरण की परंपरा आज भी उसी विधि से निभाई जाती है।

उनके द्वारा गाई गई आरती आज भी हर दिन मंदिर में गाई जाती है।

बेरी में माता के दो मंदिर – आध्यात्मिक संतुलन का प्रतीक

बेरी कस्बे में माता के दो भव्य और आध्यात्मिक मंदिर हैं, जिनमें भक्त विशेष श्रद्धा रखते हैं:

1. आंतरिक मंदिर (प्राचीन स्थान):

यहीं पर माता की मूर्ति सबसे पहले स्थापित की गई थी।

इसे ‘गद्दी स्थल’ भी कहा जाता है।

वातावरण शांत, साधना योग्य और ऊर्जावान है।

2. बाहरी मंदिर (मुख्य स्थल):

यह मंदिर अब भव्य रूप में विकसित हो चुका है।

यहीं पर मेले, नवरात्रि पूजा, भंडारे, जागरण और भक्ति कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

दोनों मंदिरों का दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है।

माता की पूजा और नियम

भीमेश्वरी माता की पूजा भक्तिभाव, संयम और श्रद्धा से करनी चाहिए। माता शक्ति की अधिष्ठात्री हैं, अतः नियम संयम का विशेष महत्व है।

पूजन विधि:

प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

माता को लाल चुनरी, सिंदूर, नारियल, मेहंदी, कंगन, चूड़ियाँ और फूल अर्पण करें।

माता की आरती करें और नीचे दिया गया मंत्र जपें:

“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”

नवरात्रों में कन्या पूजन और व्रत रखें।

मन्नत पूरी होने पर माता को प्रसाद, भंडारा या जागरण समर्पित करें।

माता बेरी वाली भीमेश्वरी देवी की महिमा – श्रद्धा, शक्ति और चमत्कार की जीवंत प्रतिमा

भारतवर्ष में देवी की महिमा का वर्णन करना असंभव तो नहीं, लेकिन अल्प शब्दों में अवश्य कठिन है। शक्ति की उपासना यहाँ केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि जन-जन की आत्मा से जुड़ी हुई भावना है। हरियाणा के झज्जर जिले में स्थित माता बेरी वाली भीमेश्वरी देवी का मंदिर, एक ऐसा ही शक्तिपीठ है, जो केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि भक्तों के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।

माता की महिमा न केवल पौराणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आज के समय में भी उनके असंख्य भक्त उनके चमत्कारों के साक्षी हैं। यह महिमा जनमानस की आस्था, अनुभव और भक्ति से बनी है।

शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव

माता बेरी वाली की सबसे बड़ी महिमा यह है कि वे केवल मूर्ति में नहीं, भक्तों के अंतर्मन में भी जीवंत रूप से वास करती हैं। कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, वह कभी खाली नहीं लौटता।

भक्तों के अनुभवों के अनुसार:

माता की चौखट में प्रवेश करते ही एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है।

मन की अशांति एकदम शांत हो जाती है।

जो लोग मानसिक तनाव, चिंता या असमर्थता का अनुभव करते हैं, उन्हें यहां आत्मबल की अनुभूति होती है।

चमत्कारी माता: असंभव को संभव करने वाली शक्ति

माता बेरी वाली भीमेश्वरी देवी की चमत्कारिक महिमा चारों ओर प्रसिद्ध है। यहां तक कि जिन लोगों ने माता के बारे में कभी सुना नहीं था, वे भी जब किसी संकट में यहाँ आए, तो उनकी परेशानियाँ दूर हो गईं।

कुछ प्रमुख चमत्कार जो जनमानस में प्रचलित हैं:

गंभीर बीमारियों से मुक्ति: कई श्रद्धालु कहते हैं कि जब डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, तब माता की कृपा से उन्हें नया जीवन मिला।

संतान सुख की प्राप्ति: वर्षों से संतान सुख से वंचित दंपत्तियों को माता की कृपा से संतान प्राप्त हुई।

विवाह में आ रही बाधाएँ: विवाह योग्य कन्याओं और युवकों को जब बार-बार अड़चनें आती थीं, तो माता के दरबार में मन्नत मांगने से शीघ्र ही शुभ समाचार मिला।

कानूनी मामलों में विजय: कोर्ट-कचहरी के वर्षों से चल रहे केसों में माता की कृपा से न्याय की प्राप्ति हुई।

भक्तों के दिलों में बसने वाली माता

माता की महिमा यह है कि वे किसी धर्म, जाति या वर्ग का भेदभाव नहीं करतीं। चाहे अमीर हो या गरीब, हिंदू हो या किसी अन्य धर्म का, माता के दरबार में सब एक समान होते हैं। उनकी कृपा केवल उन पर होती है, जिनके मन में सच्ची श्रद्धा और भक्ति होती है।

एक विशेष बात जो श्रद्धालु अक्सर कहते हैं:

“माता न तो बड़ी मन्नत माँगती हैं, न बड़ी चढ़ौती… वे तो बस भाव देखती हैं।”

नवरात्रों में माता की विशेष महिमा

नवरात्रि के दिनों में माता की महिमा दस गुना बढ़ जाती है। कहते हैं कि इन नौ रातों में देवी अपनी संपूर्ण शक्तियों के साथ पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं।

बेरी में इन दिनों:

लाखों श्रद्धालु जुटते हैं।

भजन-कीर्तन, जागरण, भंडारे का आयोजन होता है।

माता का दरबार सजता है, आरतियाँ गूंजती हैं, और चारों ओर भक्ति की लहर दौड़ती है।

जो व्यक्ति इन नौ दिनों में माता के दर्शन करता है, उसके जीवन में शुभता, सफलता और शांति आती है।

अनकहे अनुभव, अवर्णनीय कृपा

माता की महिमा को शब्दों में बाँधना आसान नहीं। कई ऐसे भक्त भी हैं जिन्होंने कभी मन्नत नहीं माँगी, पर फिर भी माता ने उन्हें वो दिया जो वे चाहते तक नहीं थे।

यह माता की सच्ची महिमा है —“जो माँगे सो पाए, जो न माँगे उसे भी माँ दे”

भक्त कहते हैं कि माता मन की बात भी जानती हैं। कोई कुछ कहे या न कहे, माँ सब समझ जाती हैं।

माता का ध्यान और आशीर्वाद

माता की कृपा प्राप्त करने के लिए केवल मंदिर जाना ही आवश्यक नहीं, बल्कि उन्हें मन, वचन और कर्म से स्मरण करना भी उतना ही फलदायक है।

रोज़ सुबह माता का ध्यान करें।

उनका नाम लेकर दिन की शुरुआत करें।

संकट में माँ का स्मरण करें – वह तुरंत सुनती हैं।

माता के मंत्रों का जप करें:

“जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते”

माता बेरी वाली भीमेश्वरी माता के बारे में FAQs

Q1: माता बेरी वाली कौन हैं?

A: वे शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं जिन्हें पांडव पुत्र भीम हिंगलाज पर्वत से लाए थे।

Q2: मंदिर कहाँ स्थित है?

A: यह मंदिर हरियाणा राज्य के झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित है।

Q3: क्या मंदिर का संबंध महाभारत काल से है?

A: हाँ, इसका संबंध भीम, श्रीकृष्ण, गांधारी और ऋषि दुर्वासा से जुड़ा है।

Q4: माता के कितने मंदिर हैं बेरी में?

A: दो – आंतरिक मंदिर (गद्दी स्थल) और बाहरी मंदिर (मुख्य स्थल)।

Q5: पूजा में क्या अर्पण करें?

A: लाल चुनरी, नारियल, फूल, मेहंदी, सिंदूर, चूड़ियाँ, कंगन।

Q6: मंदिर तक कैसे पहुँचे?

A: दिल्ली से लगभग 60–70 किमी दूरी पर है। निकटतम स्टेशन झज्जर है।

Q7: क्या माता की मूर्ति रोज़ शिफ्ट होती है?

A: हाँ, आज भी सुबह और दोपहर में मूर्ति स्थानांतरण की परंपरा निभाई जाती ह

निष्कर्ष

माता बेरी वाली भीमेश्वरी देवी का मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थान नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक परंपराओं का एक जीवंत प्रतीक है। जहाँ एक ओर ऋषि दुर्वासा की भक्ति है, तो दूसरी ओर भीम की श्रद्धा, गांधारी की तपस्या और लाखों श्रद्धालुओं का विश्वास।

वे देवी नहीं, माँ हैं – हर दिल की माँ, हर घर की माँ, हर भक्त की माँ। उनकी शरण में जाना केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि आत्मा का शुद्धिकरण है।

अगर आपने अब तक माता के दर्शन नहीं किए हैं, तो एक बार अवश्य जाइए।

शायद वे आपको बुला रही हों…

जय माता दी! जय बेरी वाली भीमेश्वरी माता!

माता के भजन

 

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