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Toggleश्याम चूड़ी बेचने आया – भजन
मनहारी का भेस बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया।
छलिया का भेस बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥
झोली कंधे धरी, उस में चूड़ी भरी।
गलिओं में चोर मचाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥
राधा ने सुनी, ललिता से कही।
मोहन को तरुंत बुलाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥
चूड़ी लाल नहीं पहनू, चूड़ी हरी नहीं पहनू।
मुझे श्याम रंग है भाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥
राधा पहनन लगी श्याम पहनाने लगे।
राधा ने हाथ बढाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥
राधे कहने लगी, तुम हो छलिया बढे।
धीरे से हाथ दबाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥
“श्याम चूड़ी बेचने आया” भावार्थ
यह भजन “श्याम चूड़ी बेचने आया” प्रभु श्रीकृष्ण की मनमोहक लीला को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करता है। इसमें कान्हा का मनहारी भेस दिखाया गया है, जब वे गोकुल की गलियों में चूड़ी बेचने वाले बनकर आते हैं। उनके झोले में चूड़ियाँ भरी होती हैं और उनकी मधुर लीला देखकर राधा और सखियाँ मोहित हो जाती हैं।
भजन में राधा जी कहती हैं कि वे न लाल चूड़ी पहनेंगी, न हरी, उन्हें तो केवल श्याम रंग भाता है। यह भाव श्रीकृष्ण के रंग में रंग जाने और उनसे पूर्णतः एकाकार हो जाने की अद्भुत प्रतीकात्मकता दर्शाता है। जब राधा चूड़ी पहनने के लिए हाथ बढ़ाती हैं, तो श्याम धीरे से उनका हाथ दबाकर अपनी प्रेम लीला का रस घोल देते हैं।
यह कृष्ण भजन हमें बताता है कि सच्चा प्रेम रंग-रूप या बाहरी श्रृंगार से परे है। राधा और श्याम का यह मधुर संवाद भक्ति, समर्पण और ईश्वर के प्रेम की सर्वोच्चता को दर्शाता है। इसीलिए यह भजन सुनने वाले हर भक्त के हृदय को आनंद और भक्ति से भर देता है।