एक राधा एक मीरा,दोनों ने श्याम को चाहा भजन लिरिक्स (Ek Radha Ek Meera Dono ne Shayam ko chaha Lyrics in Hindi)

एक राधा एक मीरा,दोनों ने श्याम को चाहा भजन

एक राधा एक मीरा,दोनों ने श्याम को चाहा – भजन 

एक राधा एक मीरा,

दोनों ने श्याम को चाहा,

अंतर क्या दोनों की चाह में बोलो,

एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी ।

 

एक राधा एक मीरा,

दोनों ने श्याम को चाहा,

अंतर क्या दोनों की चाह में बोलो,

एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी ।

 

राधा ने मधुबन में ढूँढा,

मीरा ने मन में पाया,

राधा जिसे खो बैठी वो गोविन्द,

मीरा हाथ बिक आया,

एक मुरली एक पायल,

एक पगली एक घायल,

अंतर क्या दोनों की प्रीत में बोलो,

अंतर क्या दोनों की प्रीत में बोलो,

एक सूरत लुभानी एक मूरत लुभानी,

एक सूरत लुभानी एक मूरत लुभानी,

एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी ।

 

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,

राधा के मनमोहन,

सा गा मा पा धा

पा धा मा पा रे मा गा

धा रे सा नि धा रे रे गा मा

गा पा मा पा धा पा सा नी सा रे आ…

 

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,

राधा के मनमोहन,

राधा नित श्रृंगार करे और,

मीरा बन गयी जोगन,

एक रानी एक दासी,

दोनों हरी प्रेम की प्यासी,

अंतर क्या दोनों की तृप्ति में बोलो,

अंतर क्या दोनों की तृप्ति में बोलो,

एक जीत न मानी एक हार न मानी,

एक जीत न मानी एक हार न मानी,

एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी ।

 

एक राधा एक मीरा,

दोनों ने श्याम को चाहा,

अंतर क्या दोनों की चाह में बोलो,

एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी ।

एक राधा एक मीरा,दोनों ने श्याम को चाहा भजन भावार्थ

यह भजन राधा और मीरा की अनोखी भक्ति का अद्भुत चित्रण करता है। इसमें बताया गया है कि दोनों ने श्याम को प्रेम किया, लेकिन उनकी चाहत और भक्ति का मार्ग भिन्न था। राधा ने मधुबन में कृष्ण को ढूँढा और श्रृंगार व माधुर्य के माध्यम से अपना प्रेम प्रकट किया। वहीं मीरा ने अपने हृदय में गिरधर नागर को पाया और सांसारिक बंधनों को त्यागकर जोगन बन गईं। राधा प्रेम दीवानी थीं, तो मीरा दरस दीवानी।

भजन में यह भी दर्शाया गया है कि राधा को श्रृंगार और सौंदर्य के माध्यम से कृष्ण का मिलन प्रिय था, जबकि मीरा को केवल श्याम के चरणों में भक्ति और समर्पण ही संतोष देता था। राधा का प्रेम बाहरी रूप में झलकता था, जबकि मीरा की भक्ति आत्मिक और गहन थी। एक ओर रानी का रूप था, तो दूसरी ओर दासी का समर्पण।

अंततः भजन यह सिखाता है कि भक्ति के मार्ग चाहे अलग-अलग क्यों न हों, परंतु सच्चे हृदय से किया गया प्रेम और समर्पण ईश्वर तक अवश्य पहुँचता है। चाहे राधा का माधुर्य हो या मीरा का त्याग, दोनों का लक्ष्य केवल श्याम का सानिध्य और उनकी कृपा पाना था।

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