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Toggle“जय काल महाकाल” भजन का भावार्थ और आध्यात्मिक विश्लेषण
“जय काल महाकाल विकराल शम्भो” — यह भजन केवल एक गान नहीं, बल्कि परम शिव की व्यापकता, शक्ति और करुणा का अद्वितीय संगीतमय स्तवन है। इसके प्रत्येक चरण में शिव के विविध रूपों, स्वरूपों और कार्यों का गूढ़ अर्थ छिपा है।
जय काल महाकाल विकराल शम्भो,
जीवन हो या मृत्यु दोनों ही तुम हो,
जन्मों जन्मान्तर की लड़ियाँ ये कड़ियाँ,
हर योनि हर जीवन रखवाल तुम हो,
जय काल महाकाल,
जय काल महाकाल…..
सृष्टि के संचालक महाप्राण तुम हो,
तुम ही सुख, तुम ही दुःख, निर्वाण तुम हो,
सूरज से तेजस्वी सागर से निर्मल,
चन्दा भी, तारे भी, ब्रह्माण्ड तुम हो,
जय काल महाकाल,
जय काल महाकाल…..
जीवन की नैया तुम, पतवार तुम हो,
इस पार, उस पार, मझधार तुम हो,
कण-कण, ये हर क्षण, ये तुमसे बना है,
गूँजे तो घट भीतर ओमकार तुम हो,
जय काल महाकाल,
जय काल महाकाल…..
हिमालय के सर का श्रृंगार तुम हो,
गंगा की पावन सी एक धार तुम हो,
डम डम डम डमरू का एक नाद तुम हो,
शंखों के हृदयों की हुंकार तुम हो,
जय काल महाकाल,
जय काल महाकाल….
जय काल महाकाल किरपाल शम्भो,
त्रिलोक व्यापे हैं तेरे चरण हो,
तेरी कृपा हो तो जीवन प्रकट हो,
तेरे ही कोप से सृष्टि भस्म हो,
जय काल महाकाल,
जय काल महाकाल….
जीवन का मृत्यु का खेला रचाया,
एक लाया दुनिया में एक भिजवाया,
इन्सान बेचारे ने आँसू बहाया,
तेरा ये खेला समझ ही ना पाया,
तेरा ये खेला समझ ही ना पाया….
सोचे कि अपना कोई खोया गँवाया,
जो तेरा था वो जाकर तुझमें समाया,
जो तेरा था वो जाकर तुझमें समाया,
जो तेरा था वो जाकर तुझमें समाया….
जय काल महाकाल विकराल शम्भो,
जीवन हो या मृत्यु दोनों ही तुम हो,
जन्मों जन्मान्तर की लड़ियाँ ये कड़ियाँ,
हर योनि हर जीवन रखवाल तुम हो,
जय काल महाकाल,
जय काल महाकाल……
काल और महाकाल का स्वरूप
भजन का आरंभ ही ‘जय काल महाकाल विकराल शम्भो’ से होता है, जो शिव के उन रूपों का वर्णन करता है जो समय से परे हैं। ‘काल’ का अर्थ है समय और मृत्यु, जबकि ‘महाकाल’ वह सत्ता है जो स्वयं काल को भी नियंत्रित करती है। यह स्पष्ट करता है कि शिव न केवल सृष्टि के सर्जक हैं, बल्कि उसके संहारक भी हैं।
जीवन और मृत्यु के मध्य शिव
पंक्तियाँ — “जीवन हो या मृत्यु दोनों ही तुम हो” — दर्शाती हैं कि शिव जीवन के हर पक्ष में विद्यमान हैं। शिव वही हैं जो जन्म में भी साथ हैं और मृत्यु के बाद भी। यह भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि वह कभी अकेला नहीं है।
हर जन्म, हर योनि में शिव की उपस्थिति
“हर योनि हर जीवन रखवाल तुम हो” — यह पंक्ति उस सार्वभौमिक भावना को उजागर करती है जहाँ शिव हर रूप में, हर काल में, हर जीव के रक्षक हैं। वे केवल मानवों के ही नहीं, समस्त जीवों के ईश्वर हैं।
सृष्टि और तत्वों का संचालन
“सृष्टि के संचालक, महाप्राण तुम हो” — शिव का यह स्वरूप पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) के संचालन में विद्यमान है।
“सूरज से तेजस्वी, सागर से निर्मल” — यह उनकी दोहरी प्रकृति को दर्शाता है। वे उग्र भी हैं, शांत भी। तेजस्वी भी हैं, सौम्य भी।
जीवन नैया के खिवैया
“जीवन की नैया तुम, पतवार तुम हो” — भक्त को यह पंक्ति सिखाती है कि कठिनाइयों के बीच यदि कोई उसका सहारा बन सकता है तो वह है शिव।
ध्वनि और ऊर्जा में शिव
“गूँजे तो घट भीतर ओंकार तुम हो” — यहाँ शिव को ‘ॐ’ रूप में स्थापित किया गया है, जो सृष्टि का मूल ध्वनि स्रोत है। यह दर्शाता है कि शिव ब्रह्मांडीय कंपन हैं।
“डमरू का नाद”, “शंखों की हुंकार” — शिव ध्वनि के सृजनकर्ता हैं, जो ब्रह्मा से पहले की चेतना को दर्शाते हैं।
शिव की कृपा और कोप
“तेरी कृपा हो तो जीवन प्रकट हो, तेरे ही कोप से सृष्टि भस्म हो” — शिव की दो धाराएँ दर्शाई गई हैं। वह असीम करुणा भी हैं और रौद्र संहारक भी।
शिव के खेल का अद्भुत रहस्य
भजन में जो पंक्तियाँ जीवन और मृत्यु के अद्भुत चक्र को दर्शाती हैं — “इन्सान बेचारे ने आँसू बहाया, तेरा ये खेला समझ ही ना पाया” — यह मानव की सीमित समझ को दर्शाती हैं। मृत्यु को अंत समझने वाला मानव यह नहीं समझ पाता कि वह तो शिव में विलीन होना है।
अंतिम मोक्ष का संदेश
“जो तेरा था वो जाकर तुझमें समाया” — यह आत्मा की परम यात्रा को दर्शाता है जहाँ अंततः सब शिव में लीन हो जाते हैं। यह भजन समर्पण की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
निष्कर्ष
यह भजन केवल स्तुति नहीं, बल्कि शिव के तत्व को समझने का एक माध्यम है। इसमें सृष्टि, संहार, ऊर्जा, ध्वनि, करुणा, शक्ति और मोक्ष — सभी तत्त्व समाहित हैं।
“जय काल महाकाल” एक ऐसा मंत्र है जो केवल संकट के समय नहीं, बल्कि जीवन की प्रत्येक स्थिति में शिव की उपस्थिति और शक्ति का स्मरण कराता है। यह भजन श्रद्धा से भरपूर, साधना के योग्य और आत्मा को शिवत्व की ओर ले जाने वाला है।